शहर की भागदौड़ और शिफ्टों में बीतती जिंदगी कुछ ना करने वालों को नहीं भाती। इस परिवेश से कदमताल करते समय भी अपने यहां की मिट्टी और आबोहवा उन्हें लगातार अपनी ओर खींचती है। मंडी जिला के सिद्धार्थ शर्मा की कहानी भी ऐसी ही है।
हरियाणा से 2014 में इंजीनियरिंग करने के बाद उन्होंने राजधानी दिल्ली से सटे नोएडा शहर में 2 साल प्राइवेट नौकरी की। मगर अपनी मिट्टी की महक उन्हें हिमाचल खींच ही लाई। उन्होंने यहीं रहकर सरकारी नौकरी के लिए तैयारी शुरू कर दी। इस बीच उनका रूझान खेती के प्रति बढ़ता गया।
हालांकि 2017 में उन्होंने फिर से प्राइवेट नौकरी शुरू की लेकिन 1 साल बाद उन्होंने खेती करने के लिए नौकरी छोड़ दी। खाली छोड़ी पुश्तैनी जमीन पर खेती करने से पहले उन्होंने पॉलीहाउस में खेती करने एवं प्राकृतिक खेती विधि पर एक-एक महीने का प्रशिक्षण नौणी विश्वविद्यालय से 2018 में प्राप्त किया। इसके बाद सिद्धार्थ ने पुराने आम के बागीचे में इस विधि का ट्रायल किया। प्राकृतिक खेती से उनकी पैदावार और फल की गुणवत्ता बढ़ी। पहले जो बागीचा 20,000-30,000 हजार कीमत में जाता था वह अब 1 लाख से ज्यादा आमदनी देने लगा।
प्राकृतिक खेती के परिणाम से उत्साहित होकर 2018 में ही उन्होंने दशकों पहले खाली छोड़ी जमीन पर इस खेती विधि से सब्जियां लगाईं। इसके अलावा 3 बड़े पॉलीहाउस में भी उन्होंने प्राकृतिक खेती विधि से अलग-अलग फसलें लगाना शुरू कर दिया। सिद्धार्थ ने बताया कि प्राकृतिक खेती में जीवामृत, घनजीवामृत के प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बेहतर होती गई और खट्टी लस्सी तथा बाकि फसल सुरक्षा आदानों से फसलें बीमारियों के प्रकोप से बच गईं। सिद्धार्थ ने फूल उत्पादन में भी हाथ आजमाया और इसमें सफलता का स्वाद भी चखा। लेकिन कोरोना काल के दौरान बाजार व्यवस्था चरमरा गई और उन्हें नुकसान उठाना पड़ा। मगर उन्होंने अपना हौसला डिगने नहीं दिया और खेती करते रहे।
सिद्धार्थ ने अपने बागीच का आम प्रदेश के साथ चंडीगढ़ में भी बेचा है। चूंकि शुरूआत में प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों के प्रमाणीकरण के लिए कोई स्थापित व्यवस्था नहीं थी, इसलिए उन्होंने नगर निगम चंडीगढ़ से अनुमति लेकर आम बेचा। मगर अब कृषि विभाग की ओर से उनका निशुल्क प्रमाणीकरण कर उन्हें प्रमाणपत्र जारी किया गया है जिसको दिखाकर वह पूरे आत्मविश्वास के साथ बाजार में अपने उत्पाद बेच रहे हैं।
पिछले 5 साल से प्राकृतिक खेती कर रहे सिद्धार्थ अब इसमें पूरी तरह पारंगत हो गए हैं। उन्होंने 11 बीघा भूमि में फल-सब्जी और फूल उत्पादन का एक उत्कृष्ट मॉडल खड़ा किया है। अब मंडी सहित अन्य जिलों के किसान उनके यहां आकर प्राकृतिक खेती के गुर सीखते हैं।