वैश्विक महामारी कोविड 19 से जहां लगभग सभी क्षेत्रों पर असर पड़ा है, वहीं सबसे अधिक असर लोगों के रोजगार पर पड़ा है। ऐसी विपरित परिस्तितियों में भी कृषि क्षेत्र आर्थिकी की रिढ़ बनकर उभरा है। हिमाचल के सिरमौर जिला के पराड़ा गांव ने आत्मनिर्भर गांव का उदाहरण पेश किया है। पराड़ा गांव में 40 परिवार रहते हैं और यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती-बाड़ी है। पराड़ा गांव हर साल केवल लहसुन की खेती से ही एक करोड़ रूपये की कमाई करता है। जहां कोरोना की वजह से शहरों और गांवों की आर्थिकी पर असर पड़ा है, वहीं इस गांव के लोगों की कमाई पर कोरोना को कोई खास असर नहीं देखा गया है। गांव के लोगों ने अकेले लहसुन की खेती और उसके उचित विपणन के माध्यम से अपने आप को कोरोना काल में भी बचाए रखा है। गांव के लोग उच्च गुणवत्ता वाला लहसुन उगा रहे हैं इसलिए उनके लहसुन की मार्केट में भारी मांग रहती है।पराड़ा गांव में 40 परिवार रहते हैं और ये परिवार केवल लहसुन उगाकर ही 1 करोड़ से अधिक का व्यापार करते हैं। इसके अलावा अब गांव बेमौसमी सब्जियों की खेती और फलों की बागवानी की ओर भी बढ़ रहा है। जिससे गांव में समृद्धि आ रही है।
गांव के किसान अर्जुन अत्री बताते हैं कि हमारा गांव मध्य पर्वतिय क्षेत्र में आता है जो लहसुन की खेती के लिए बहुत ही उत्तम है। उन्होंने बताया कि हमारे गांव में 10 वर्ष पहले ही लहसुन की व्यवसायिक खेती शुरू हुई है, लेकिन इन दस सालों में ही हमारे क्षेत्र ने अच्छी क्वालिटी का लहसुन उगाकर पूरे देश में नाम कमा लिया है। अर्जुन ने बताया कि हमारे क्षेत्र में जो लहसुन उगता है उसका साइज अच्छा होता है और ठोस होने की वजह से उसकी सैल्फ लाइफ अधिक होती है। क्योंकि साउथ के लोग मच्छली अधिक खाते हैं और इसमें लहसुन का अधिक प्रयोग होता है। ऐसे में लोगों को अच्छी क्वालिटी का लहसुन मिलने से वहां के व्यापारी हमारे गांव में पहुंचकर लहसुन ले जाते हैं।
पराड़ा गांव के किसान विरेंद्र ने बताया कि पहले हम भी अन्य गांवों के किसानों की तरह दिल्ली में अपना लहसुन बेचते थे और इससे हमें कम दाम ही मिलते थे। लेकिन जब हमें पता चला कि साउथ में हमारे लहसुन की खासी डिमांड है तो हमने सीधे साउथ के आढतियों के साथ संपर्क किया। अब हमारा सारा लहसुन साउथ के आढतिए स्थानिय टांसपोर्टस और आढतियों की सहायता से उठा लेते हैं। इससे हमें अब प्रति किलो 30 से 35 रूपये अधिक का दाम मिल रहा है।
गांव के अन्य किसानों हरनाम सिंह, सुरेश, गुमान सिंह, जगदर्शन और बीरबल ने बताया कि हमारे गांव में लोग व्यवसायिक तौर पर लहसुन की खेती करते हैं, इसलिए हमारे यहां प्रचुर मात्रा में लहसुन का स्टॉक रहता है,
जिसे खरिदने के लिए साउथ का आढतिये पहुंचते हैं, जबकि पड़ोस के गांव में लहसुन की खेती की ओर ध्यान नहीं दिया जाता और कम उत्पाद होने की वजह से वहां ज्यादा खरीददार नहीं पहुंचते। इसकी वजह से उनके पास अपने उत्पाद को बेचने के ज्यादा अवसर भी नहीं रहते हैं। कोरोना काल में पड़ोस के गांवों को अपना उत्पाद कम दामों में बेचने को मजबूर होना पड़ा थाए लेकिन हमारे गांव के किसानों को किसी तरह की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ा।
अर्जुन अत्री कहते हैं कि उन्होंने अब प्राकृतिक खेती को अपनाया है इससे उनकी कृषि लागत में बेतहाशा कमी आई है और मुनाफा बढ़ा है। उन्होंने बताया कि हमने अपने उत्पादों को बेचने के लिए आपका अपना फार्मर के नाम से एक किसान उत्पाद संघ बनाया है। जिसमें प्राकृतिक खेती विधि से उगाए हुए उत्पादों को बाजार में अच्छे दामों में बेचा जा रहा है। इससे किसानों की आय में वृद्धि हो रही है।
सिरमौर का पराड़ा गांव एक ऐसा गांव है जहां कोरोना के कारण नौकरी खोने वाले युवाओं ने आकर खेती शुरू की और अब मुनाफे को देखकर ये युवा रोजगार के लिए गांव को छोडने के लिए तैयार नहीं है। पराड़ा गांव के युवाओं ने गांव को और अधिक समृद्ध बनाने के लिए खेती में नई तकनीकों के प्रयोग के साथ टीकाउ और सस्ती खेती पद्धति को अपनाने की दिशा की ओर कदम उठाया है।