व्यवस्था परिवर्तन का नारा देकर और गारंटियों के सब्जबाग दिखा कर सत्ता में आई कांग्रेस की सुखविंदर सिंह ‘सुक्खू’ सरकार के एक वर्ष का कार्यकाल नाकामियों का दस्तावेज है। संगठन हो या सरकार, तालमेल का अभूतपूर्व अभाव देखने में आ रहा है। शिक्षा हिमाचल प्रदेश का ऐसा विषय है, जिससे हर घर जुड़ा है। किंतु शिक्षा की प्राथमिकता यह है कि विदेश में शिक्षक भेजने में भी एक कथित मानदंड बनाया गया है जिसमें और सबकुछ है किंतु कोरोना काल में हर घर पाठशाला के माध्यम से घर-घर तक शिक्षा देने वालों का जिक्र ही नहीं है। केवल अवार्ड के सर्वाधिक नंबर रखे गए हैं। शिक्षा बोर्ड को आज तक एक अध्यक्ष नहीं मिला। बोर्ड में लापरवाही की स्थिति वह है कि सुबह होने वाली परीक्षाओं के आगे रात्रिकालीन समय लिखा है। एक ओर प्रधानमंत्री देशभर के बच्चों के साथ परीक्षा से पूर्व इसलिए बात करते हैं ताकि विद्यार्थी तनाव या अवसाद में न रहें किंतु हिमाचल प्रदेश में वार्षिक परीक्षाओं की डेटशीट ही ऐसी बनाई है कि बच्चा सिर न उठा सके।
स्वास्थ्य की स्थिति यह है कि आईजीएमसी और टांडा के मेडिकल कालेज में महत्वपूर्ण जांच के लिए मरीजों को अप्रैल की तारीख मिल रही है। उद्योगों का आलम यह है कि वे पलायन कर रहे हैं और जब उद्योग मंत्री मौखिक रूप से मुख्यमंत्री को कुछ बताते हैं तो सुना नहीं जाता और उद्योग मंत्री को कहना पड़ता है कि अब सारी बात लिखित में ही मुख्यमंत्री को बताई जाएगी। शिक्षा, स्वास्थ्य और उद्योग में ये हाल हैं। आए दिन केंद्र को कोसने वाले मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू हमें परामर्श देते हैं कि हम जनहित की राजनीति करें। मेरा उनसे प्रश्न है कि आपने अब तक सलाहकारों की फौज बना कर, उन्हें कैबिनेट रैंक देकर कौन से जनहित की राजनीति की है। हमारी सरकार ने तो मुख्य संसदीय सचिव नहीं बनाए। जयराम ने कहा कि कांग्रेस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि अब कांग्रेस के विधायक भी सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं कि कांग्रेस की बैठकें शोकसभाएं हैं और चुने हुए लोगों को हटा कर अन्य को मूंगफलियों की तरह कैबिनेट रैंक बांटे गए हैं।