जलवायु परिवर्तन के दौर में पिछले कुछ सालो से हीट वेव एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। क्योंकि इससे बढ़ती मृत्युदर ने समूचे विश्व को इस और सोचने पर मजबूर किया है। ऐसे में अब यह जरुरी गया है कि हीट वेव के बारे लोगों को जागरूक कर सके। ताकि इसके बढ़ते प्रभाव को काम करने में मदद मिल सके। वैसे गर्मियां आते ही पानी और हीट वेव को लेकर चर्चाएं तेज़ हो जाती है। खैर पानी को लेकर अक्सर बात करते रहते है लेकिन आज हम आपको हीट वेव के बारे में जानकारी देंगे आखिर हीट वेव क्या होती है,कब होती है इससे बचाव के क्या तरीके है। इस वीडियो के माध्यम से हीट वेव के बारे में बेहतर जान सकेगे।
- हीटवेव (लू) क्या है?
लम्बे समय तक अत्यधिक गर्म मौसम बरकरार रहने से हीटवेव बनता है। हीटवेव असल में एक स्थान के वास्तविक तापमान और उसके सामान्य तापमान के बीच के अन्तर से बनता है। आईएमडी के मुताबिक, यदि एक स्थान का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस तक और पहाड़ी क्षेत्रों में कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है तो हीटवेव चलती है। यदि वृद्धि 6.4 डिग्री से अधिक है और वास्तविक तापमान 47 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाए, तो इसे एक गम्भीर हीटवेव कहा जाता है। तटीय क्षेत्रों में, जब अधिकतम तापमान से 4.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाए या तापमान 37 डिग्री सेल्सियस हो जाए तो हीटवेव चलता है।
- हीटवेव के क्या कारण हैं?
हीटवेव को मोटे तौर पर एक जलवायु सम्बन्धी घटना के रूप में देखा जा सकता है, लेकिन इसमें आस-पास के पर्यावरणीय कारक भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उच्च वायुमण्डलीय दबाव प्रणाली वायुमण्डल के ऊपरी स्तर पर रहने वाली हवा को नीचे लाकर घुमाती है। इससे हवा में संकुचन के कारण तापमान बढ़ता है और हवा वहाँ से निकल नहीं पाती। इससे हीटवेव कई दिनों तक टिका रहता है।
- हीटवेव और जलवायु के बीच क्या सम्बन्ध है?
ग्लोबल वार्मिंग और हीटवेव के बीच एक सकारात्मक सम्बन्ध देखा गया है पर इन दोनों के बीच अब तक कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध साबित नहीं किया जा सका है। जलवायु विज्ञान के अनुसार, जैसे-जैसे पृथ्वी गर्म हो रही है, भविष्य में हीटवेव के और मजबूत होने की सम्भावना है।
- भारत में हीटवेव कितनी आम बात है?
भारत में गर्मी के महीनों में हीटवेव एक आम बात है। मॉनसून (जून) की शुरुआत से पहले के महीनों में देश के ज्यादातर क्षेत्र हीटवेव का सामना करते हैं। साल 2013 में एक अध्ययन के अनुसार उत्तरी, उत्तर-पश्चिमी, मध्य, पूर्वी और प्रायद्वीपीय भारत के कुछ हिस्सों सहित करीब आधा भारत गर्मियों के दौरान लगभग 8 दिन हीटवेव झेलता है।
- क्या हीटवेव का अनुमान लगाया जा सकता है?
वर्ष 2016 से आईएमडी ने गर्मियों के लिये मौसमी अनुमान के अतिरिक्त अपने पूर्वानुमान की सीमा को बढ़ाया है। वे आने वाले चार हफ्तों के लिये साप्ताहिक तौर पर हीटवेव का अनुमान लगाते हैं। अब यहाँ उप-मण्डल स्तर पर ग्राफिकल चेतावनियाँ तैयार की जाती हैं और इसे साप्ताहिक तौर पर जारी किया जाता है।
- इंसानों पर लू का क्या प्रभाव पड़ता है?
इस समय लू नेशनल क्राइम ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा दर्ज एकमात्र स्वास्थ्य विकार है जो हीटवेव से सीधे जुड़ा है और यह प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतों का तीसरा बड़ा कारण है। लू शरीर का निर्जलीकरण कर देता है और प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता है। यदि पहले से मौजूद अस्वस्थता को ध्यान में रखा जाए तो भारत की उच्च मृत्युदर और हीटवेव के बीच सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है।
- क्या स्थानीय कारक भी गर्मी के असर को प्रभावित करते हैं?
हीटवेव माइक्रो और मैक्रो कारकों से बनता है। किसी इंसान के शरीर पर गर्मी का क्या असर होगा इसके पीछे वायु, दबाव, ऊँचाई, सतह के परावर्तन, आर्द्रता आदि की भूमिका होती है। यह देखा गया है कि उच्च सापेक्षिक आर्द्रता वाले तटीय क्षेत्रों में गर्मी से ज्यादा लोग मरते हैं।
- हमें अभी चिन्तित क्यों होना चाहिए?
वर्ष 2015 में 217 स्थानों के जलवायु सम्बन्धी चरम घटनाओं के अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि पिछले चार दशकों में हीटवेव की संख्याओं में सतत वृद्धि हुई है। हीटवेव की संख्याओं में सबसे बड़ी वृद्धि आखिरी दशक (2002-2012) में दर्ज की गई। आईएमडी के अनुसार, देश के दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में अधिकतम तापमान वाले दिनों की संख्या बढ़ी है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट अहमदाबाद द्वारा 2015 में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से मृत्यु दर करीब 70 प्रतिशत बढ़ सकती है और सदी के अन्त तक तापमान में 6 डिग्री की वृद्धि मृत्यु दर को लगभग 140 फीसदी तक बढ़ा देगी।
- क्या सरकार ने हीटवेव से निपटने को कोई तरीका निकाला है?
मुआवजे के बँटवारे के लिये केंद्र सरकार द्वारा उपयोग किए जाने वाले राष्ट्रीय पंजीकरण में हीटवेव को प्राकृतिक आपदा नहीं माना गया है। केंद्र सरकार हीटवेव को सूखे का ही एक उपभाग मानती है। कोई भी मुआवजा या समस्याओं को घटाने के उपाय आमतौर पर राज्य या स्थानीय सरकारी निकायों द्वारा बनाए और कार्यान्वित किए जाते हैं।