प्राकृतिक आपदाओं के लिए बेहद संवेदनशील हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में बढ़ोतरी देखी जा रही है। वर्ष 2021 के मानसून सीजन के डेढ माह के भीतर ही हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं की वजह से 218 लोगों की जानें जा चुकी हैं। वहीं भारी बारीश, बाढ़, बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं से प्रदेश में एक हजार करोड़ रूपये से अधिक के नुकसान का आंकलन किया जा चुका है। हिमाचल प्रदेश में मानसून सीजन के शुरूआती 15 दिनों में धीमी शुरूआत के बावजूद जुलाई के दूसरे सप्ताह के बाद प्रदेश में भारी बारीश देखी गई है। मौसम में आ रहे इन भारी बदलावों के कारण सबसे ज्यादा नुकसान प्रदेश के किसान-बागवानों और पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों को उठाना पड़ा है।
कृषि और बागवानी क्षेत्र में जहां पहले अप्रैल-मई माह में बेमौसमी बारीश और बर्फबारी की वजह से किसानों और बागवानों को भोरी नुकसान उठाना पड़ा था। बेमौसमी भारी बारीश और बफबारी की वजह से कृषि क्षेत्र की 148908 हैक्टेयर भूमि में खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचा था, वहीं 231173 हैक्टेयर भूमि में खड़े विभिन्न बागवानी फसलों पर इसका असर देखने को मिला था। अभी जब किसान-बागवान अप्रैल मई के नुकसान से उभरा ही था कि जुलाई माह प्राकृतिक आपदाओं से किसान-बागवानों के सामने रोजी-रोटी को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है। सेब सीजन पर विपरित असरहिमाचल में हो रही भारी बारीश का सबसे अधिक असर सेब और बेमौसमी सब्जियों की खेती करने वाले किसान-बागवानों पर पड़ा है। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश में करीब 5000 करोड़ की सेब बागवानी का सीजन जोर पकड़ रहा है। लेकिन बारीश की वजह से हिमाचल प्रदेश के विभिन्न जिलों में सड़कें बंद पड़ी हैं। हिमाचल प्रदेश आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार 2 अगस्त को हुई बारीश की वजह से प्रदेश की 462 सड़कें बंद थी। ऐसे में सड़कों के बंद होने की वजह से लोगों का सेब मंडियों तक नहीं पहुंच पा रहा है। गौर रहे कि हिमाचल की आर्थिकी में सेब बागवानी का अहम योगदान रहता है। ऐसे में बागवानों का सेब बाजार तक न पहुंच सकने की वजह से बागवानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है।
लाहौल स्पीति में कुदरत के कहर से किसान चिंतित हिमाचल के जनजातिय क्षेत्र लाहौल स्पीति में इस बार कुदरत का कहर देखने को मिला है। लाहौल स्पीति में 27 जुलाई को हुई भारी बारीश की वजह से जिले का उदयपुर डिविजन शेष दुनिया से पूरी तरह कट गया है। जिसे अभी तक पूरी तरह बहाल नहीं किया गया है। गौर रहे कि लाहौल स्पीति के छह माह तक बर्फ में ढके होने की वजह से इस जिले के किसानों को केवल एक ही क्रापिंग सीजन में खेती करने का मौका मिलता है। यहां के किसान बेमौसमी सब्जियों और फलों की खेती पर पूरी तरह निर्भर रहते हैं। आजकल लाहौल में आलू, मटर, फूल और अन्य एग्जोटिक वेजीटेबल की फसलें तैयार हैं, लेकिन सड़क सुविधा बहाल न होने की वजह से किसानों को अपनी सब्जियों को नष्ट करना पड़ रहा है। लाहौल के किसान शाम आजाद बताते हैं कि लाहौल के किसानों की फसलें तैयार हैं लेकिन सड़कें बहाल न होने की वजह से किसानों को अपनी सारी मेहनत को खराब होते देखना पड़ रहा है।
पर्यटन व्यवसाय भी पड़ा ठप्प पहले कोरोना की वजह से नुकसान झेल रहे पर्यटन व्यवसाय पर भी बारीश की वजह से बहुत बुरा असर पड़ा है। पहले धर्मशाला में बादल फटने की वजह से मारे गए पर्यटकों और फिर किन्नौर के बटसेरी हादसे की वजह से हिमाचल में पर्यटक आने से कतरा रहे थे। ऐसे में भारी बारीश की वजह से कई स्थानों में सड़कें बंद होने से हजारों पर्यटक विभिन्न स्थानों में फंस गए। नौबत यहां तक पहुंची की कईयों को तो एयलिफ्ट करवाना पड़ा। इन दृश्यों को देखकर अब पर्यटक हिमाचल आने से कतरा हरे हैं। पर्यटन व्यवसाय से जुड़े अनिल अत्री बताते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं ने हिमाचल में पर्यटन को हजारों करोड़ रूपये का नुकसान पहुंचाया है। कई स्थानों में पर्यटकों के मारे जाने से अब बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटक हिमाचल आने से कतरा रहे हैं।
हिमाचल में बढ़ रही प्राकृतिक आपदाओं के बारे में पयार्यरण और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था हिमधारा के सदस्य सुमित मेहर का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में बन रहे बेतहाशा पावर प्रोजेक्टों के निर्माण के समय पर्यावरणिय पहलुओं की ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि हमने प्रदेश के विभिन्न स्थानों में पावर प्रोजेक्ट को लेकर स्टडी की है। जिससे निकलकर आया है कि इनके बनने से पारिस्थितिकी में बहुत असर पड़ रहा है। इसलिए अब प्रदेश में पावर प्रोजेक्टों के खिलाफ आवाज बुलंद होती जा रही है।
इंपैक्ट एडं पॉलीसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के रिसर्च फैलो टिकेंद्र पंवर का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में पावर प्रोजेक्ट और नेशनल हाइवे के काम बड़े जोरों से किए जा रहे हैं, लेकिन इनको बनाती बार पर्यावरण के उपर पड़ने वाले प्रभावों के उपर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जिसका खामियाजा प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देखने को मिल रहा है।