दुनिया भर में टीबी (तपेदिक) हर साल लगभग 13 लाख लोगों की जान ले लेती है। जो एचआईवी एड्स और मलेरिया से होने वाली मौतों से कहीं अधिक है। टीबी दुनिया की सबसे घातक संक्रामक बीमारी है जो लगभग हर 20वें सेकंड में एक की जान ले लेती है। लेकिन इतनी भारी मृत्यु दर के होने के बावजूद भी टीबी शायद ही कभी सुर्खियों में आती है। टीबी के प्रसार को रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थांए और केंद्र व राज्य सरकारें बड़े स्तर पर काम कर रही हैं। बावजूद इसके टीबी के रोगियों की संख्या में खासी कमी नहीं देखी जा रही है। इसके पीछे मुख्य कारण जागरूकता का अभाव है। भारत जैसे ग्रामीण प्रधान देश में जहां ज्यादातर जनसंख्या गांवों में रहती हैं, वहां तक टीबी के बारे में सही जानकारी न पहुंचने के कारण इस संक्रामक रोग को भारत से पूरी तरह से खत्म करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अभी भी लोगों में खासकर ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों में टीबी के बारे में भ्रांतियां अधिक हैं और सटीक जानकारी बहुत कम। हिमाचल प्रदेश में हर साल लगभग 15 हजार टीबी के केस देखने को मिलते हैं और लगभग 1 हजार लोगों की जानें भी टीबी के कारण जाती हैं। हालांकि हिमाचल प्रदेश को टीबी उन्मुलन के लिए बेहतर काम करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कई बार शाबाशी मिल चुके हैं। लेकिन ग्रामीण स्तर पर लोगों और पूर्व में टीबी से ग्रसित रहे रोगियों और वर्तमान में उपचाराधीन रोगियों से बातचीत कर पता चला है कि अभी भी प्रदेश में टीबी के प्रसार को कम करने के लिए इसके प्रति जागरूकता फैलाने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है।
दो वर्ष पहले टीबी का उपचार पाकर ठीक हो चुके शिमला जिले के 28 वर्षिय रोहित शर्मा बताते हैं कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि यह रोग मुझे हो सकता है। वे बताते हैं कि मैं कोरोना का टेस्ट करवाने के लिए प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल में गया था। जहां डॉक्टरों ने कोरोना का टेस्ट करवाने के साथ मेरा टीबी का भी टेस्ट करवाया। जिसकी रिपोर्ट मुझे तीन दिन बाद मिली और उसमें मुझे टीबी डिटेक्ट हुआ। इसके बाद मेरे केस को स्थानिय डिस्पेंसरी को ट्रांसफर कर दिया गया। स्थानिय पीएचसी में मुझे दवाईयां दी गई, खाने पीने के बारे में बताया गया साथ ही मुझे बताया गया कि आपको अच्छा पोषण लेने के लिए सरकार की ओर से जब तब आपका उपचार चलेगा तब तक 500 रूपये प्रतिमाह दिया जाएगा। जो कि मुझे कभी मिला ही नहीं। रोहित ने बताया कि टीबी के रोगी वैसे ही टीबी होने की कन्फर्मेंशन के बाद सदमे में होते हैं, ऐसे समय में उन्हें भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है। लेकिन यह सहारा रोगियों को नहीं मिल पाता है। वे कहते हैं कि टीबी रोगियों को एक डाइट चार्ट देना चाहिए। उन्हें टीबी चैंपियन के बारे में जानकारी देनी चाहिए, उनका समय-समय पर टेस्ट होना चाहिए, उन्हें समय समय पर कांउसलर द्वारा दवाईयों का उनके शरीर और उनकी मानसिक स्थिति पर पड़ने वाले असरे के बारे में जानकारी देनी चाहिए। इसके अलावा जब टीबी रोगियों की दवाईयां बंद हो जाती हैं और उन्हें इस रोग से मुक्त करार दिय जाता है तो इसके बाद के जीवन में बीमारी के दौरान खाई गई दवाईयों के साईड इफेक्ट के साथ बीमारी के बाद आफ्टर इफेक्टस के बारे में भी बताना चाहिए ताकि वह इससे अच्छे से निपट सके। रोहित ने बताया कि इस रोग के बारे में लोगों में बहुत कम जानकारी है इसलिए इसके बारे में व्यापक जानकारी लोगों तक पहुंचानी चाहिए।
टीबी क्या है
टीबी एक हवा में फैलने वाली बीमारी है जो संक्रमित लोगों के खांसने, बात करने या यहाँ तक कि गहरी साँस छोड़ने से भी फैलती है। यह बीमारी आम तौर पर फेफड़ों पर हमला करती है, लेकिन शरीर के लगभग किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकती है। शुरुआत में लक्षण हल्के हो सकते हैं और सामान्य सर्दी जैसी अन्य स्थितियों से मिलते.जुलते हैंए जिससे टीबी का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। अगर इसका इलाज न किया जाए, तो यह जानलेवा हो सकता है। टीबी के उपचार और यहां तक कि इलाज भी है। लेकिन पूरी तरह से ठीक होने का रास्ता लंबा और कठिन है। मलेरिया जैसी बीमारियों के विपरीत, जिनका कुछ दिनों में इलाज किया जा सकता है। टीबी के लिए कम से कम चार महीने के उपचार की आवश्यकता होती है, और गंभीरता और दवा की संवेदनशीलता के आधार पर इलाज में और भी अधिक समय लग सकता है। मानक उपचार में पाँच दवाएँ शामिल हैं। जिन्हें हर दिन एक साथ लेना चाहिए। इन दवाओं के कई दुष्प्रभाव होते हैं जैसे कि मतली, त्वचा पर चकत्ते और पीलिया। टीबी का खतरा उन लोगों को ज्यादा होता है, जिन्हें पहले ही कोई बड़ी बीमारी जैसे. एड्स, डायबिटीज आदि है। इसके अलावा कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों में भी इस रोग का खतरा काफी होता है।
टीबी के लक्षण
· तीन हफ्ते से ज्यादा खांसी।
· बुखार, जो खासतौर पर शाम को बढ़ता है
· छाती में तेज दर्द।
· वजन का अचानक घटना।
· भूख में कमी आना।
· बलगम के साथ खून का आना।
· फेफड़ों का इंफेक्शन होना।
· सांस लेने में तकलीफ।
टीबी का कारण
टीबी से संक्रमित रोगियों के कफ से, छींकने, खांसने, थूकने और उनके द्वारा छोड़ी गई सांस से वायु में बैक्टीरिया फैल जाते हैं, जोकि कई घंटों तक वायु में रह सकते हैं। जिस कारण स्वस्थ व्यक्ति भी आसानी से इसका शिकार बन सकता है। हालांकि संक्रमित व्यक्ति के कपड़े छूने या उससे हाथ मिलाने से टीबी नहीं फैलता। जब टीबी बैक्टीरिया सांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचता है तो वह कई गुना बढ़ जाता है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। हालांकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता इसे बढ़ने से रोकती हैए लेकिन जैसे.जैसे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पड़ती है, टीबी के संक्रमण की आशंका बढ़ती जाती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, किसी को भी टीबी का संक्रमण हो सकता है, लेकिन कुछ कारकों में इसका खतरा बढ़ जाता है। यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति के अधिक संपर्क में रहते हैं जिसे टीबी रोग है तो इससे आपमें भी संक्रमण का खतरा विकसित हो सकता है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली से टीबी संक्रमण खतरा बढ़ जाता है। प्रतिरक्षा प्रणाली की कमजोरी वाली स्थितियों जैसे डायबिटीज, फेफड़ों के रोग किडनी की बीमारी, एचआईवी संक्रमितों या कैंसर के शिकार लोगों में भी खतरा अधिक देखा जाता रहा है।
टीबी की जांच करने के कई माध्यम
· छाती का एक्स रे
· बलगम की जांच
· स्किन टेस्ट आदि।
इसके अलावा आधुनिक तकनीक के माध्यम से आईजीएम हीमोग्लोबिन जांच कर भी टीबी का पता लगाया जा सकता है। अच्छी बात तो यह है कि इससे संबंधित जांच सरकार द्वारा निःशुल्क करवाई जाती हैं।
कैसे करें टीबी से बचाव
· दो हफ्तों से अधिक समय तक खांसी रहती है, तो लापरवाही न बरतें बल्कि समय रहते किसी अच्छे डॉक्टर से संपर्क करें।
· अगर आपको पता है कि किसी व्यक्ति को टीबी है तो उसके आसपास बिना मास्क लगाए न जाएं और न ही उसके बिस्तर और तौलियों का इस्तेमाल करें। क्योंकि ये एक तरह का संक्रामक रोग है।
· अगर आपके आस-पास कोई बहुत देर तक खांस रहा है,तो आप अपने मुंह पर रूमाल या मास्क लगा लें और उससे सावधान होकर तुरंत अलग हट जाएं।
· अगर आप किसी टीबी के मरीज मिलने जा रहे हैं, तो वापिस घर आकर अच्छी तरह हाथ-मुंह धोकर कुल्ला कर लें।
· इस रोग से बचाव के लिए पौष्टिक आहार लें। ऐसे आहार जिसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन्स, मिनेरल्स, कैल्शियम, प्रोटीन और फाइबर हों। क्योंकि पौष्टिक आहार हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते हैं।
· अगर आपको अधिक समय से खांसी है, तो बलगम की जांच जरूर करा लें या डॉक्टर के पास जाकर संबंधित टेस्ट कराएं।
· टीबी के मरीज को मास्क पहनकर रखना चाहिए। ताकि सामने वाले का आपके छींकने या फिर खांसने से रोग न फैलें। वहीं सामान्य व्यक्ति को भी उस वक्त सावधान हो जाना चाहिए जब उनके सामने कोई इस तरह की हरकत कर रहा हो।
· मरीज को जगह-जगह नहीं बल्कि किसी एक पॉलिथीन में थूकना चाहिए।
· मरीज को पब्लिक चीजों का कम से कम प्रयोग करना चाहिए। ताकि कोई स्वस्थ व्यक्ति इसकी चपेट में न आए।
· टीबी के इलाज के लिए जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें
टीबी से प्रभावित रोगियों का अनुभव अक्सर मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार से चुनौतीपूर्ण होता है। मानसिक प्रभाव कई रोगियों को सामाजिक कलंक का सामना करना पड़ता है, जिससे वे अपनी स्थिति को छिपाने की कोशिश करते हैं। यह स्थिति उन्हें मानसिक तनाव और अवसाद का शिकार तो बनाती ही है साथ ही उन्हें समाज से भी अलग कर देती है।
इसके अलावा टीबी का उपचार लंबा और कठिन होता है, जिसमें दवाओं का नियमित सेवन आवश्यक है। रोगियों को अक्सर 6 से 9 महीने तक दवा लेनी होती है, और इस दौरान उन्हें नियमित चिकित्सा जांच की आवश्यकता होती है। टीबी के रोगियों के लिए समुदाय का समर्थन और सही जानकारी प्राप्त करना महत्वपूर्ण है। रोगियों को अपने लक्षणों को छिपाने के बजाय डॉक्टर से संपर्क करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। ताकि समय पर उपचार शुरू किया जा सके।
टीबी का इलाज संभव है, लेकिन इसके लिए रोगियों को सक्रिय रूप से अपनी स्थिति का प्रबंधन करना और चिकित्सा सहायता प्राप्त करनी चाहिए। टीबी केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और आर्थिक चुनौती भी है। गरीबी, पोषण की कमी, और खराब आवास की स्थिति जैसे कारक इस रोग के प्रसार में योगदान करते हैं। इसके समाधान के लिए बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है। जिसमें सामुदायिक सहयोग और गैर सरकारी संगठनों की भागीदारी महत्वपूर्ण है
रोहित पराशर
आलेख रीच मीडिया फेलोशिप के तहत लिखा गया है